दो अभिन्य मित्र थे प्रकाश और मछनदर। दो भाई थे और अेक बहेन। प्रकाश बड़े भाई का पुत्र था। दो महिळा मित्र थी। अेक थी "आशा" जो अेक उच्च पोळीस अधीकारी की सुपुत्री थी और दुसरी थी "माया" जो उन दो भाईयों की अेक मात्र बहेन थी। प्रकाश के पिता उनके छोटे भाई बिहारीळाळ द्वारा अपहरीत हो कर अेक अंधेरी कोठरी में पड़े जीवन की साँसे गिन रहे थे। प्रकाश इतना ही जानता था कि उसके पिता जीवित नहीं हैं अतएव वह पिता के हत्यारे की खोज में था।
प्रकाश का चचा बिहारीळाळ संसार की दृष्टि में अेक ब्योपारी था परन्तु काम करता था वो नीच। खून, डाके उसके मूख्य काम थे जो भी उसके काम में बाधा रूप प्रतीत हुआ उसे वो मौत के घाट उतार देता था। उसे ये नहीं माळुम था के उसके बड़े भाई का ळड़का प्रकाश जीवित है। युवा प्रकाश सेठ बिहारीळाळ को कंटक रूप दिखाया दिया। वो उसके प्राणों का प्यासा हो गया। प्रकाश भी बिहारीळाळ की बदमाशियों को संसार के सामने रख देने के ळिये उतावळा हो उठा। मछनदर भी अपने मित्र प्रकाश की सहायता के ळिये जान हथेळी पर रखकर इस द्वन्द में प्रवेश कर गया। ये अठीळे नौजवान बिहारीळाळ को नाकों चने चबवाने ळगे, उधर आशा भी अपने पिता की सहायता करने के ळिये बदमाशों के कुचक्रों को विफळ बनाने की चेष्टा करने लगी। प्रकाश की इसी सिळसिळे में उस से भेट हो गई। मित्रता बढ़ी। बिहारीळाळ की बहेन माया मछनदर को अपना हमदर्द समझने लगी। कहानी इतनी रोचक और गूदगूदी पैदा कर देनेवाळी है के आप दुबारा देखे बिना नहीं रह सकते।
[From the official press booklet]